हरदा के कचबैड़ी स्कूल में शिक्षकों के अनूठे प्रयास से बदल रही शिक्षा की तस्वीर

लोकेशन: हरदा, मध्य प्रदेश संवाददाता: मोहनलाल नागले

Jul 22, 2025 - 23:28
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हरदा जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर, प्राकृतिक परिवेश में बसा कचबैड़ी गांव शिक्षा के क्षेत्र में एक नई मिसाल बन गया है। यहां की शासकीय प्राथमिक शाला (सरकारी स्कूल) अपने नवाचार, शिक्षक-समर्पण और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के प्रति प्रतिबद्धता के लिए चर्चा में है।

शिक्षक-समर्पण: बदलाव की शुरुआत

शिक्षा में गुणवत्ता और बच्चों के लिए सम्मानजनक वातावरण सुनिश्चित करने का सपना इस स्कूल के शिक्षकों ने देखा।
प्रधान पाठक राजेंद्र दीक्षित और उनकी टीम ने गांव में घर-घर जाकर न सिर्फ नामांकन अभियान चलाया, बल्कि अभिभावकों से संवाद कर सरकारी स्कूलों के महत्व को समझाया।
शिक्षकों ने बच्चों को स्कूल की ओर आकर्षित करने के लिए अपनी सामूहिक राशि से संसाधन जुटाए—डेस्क-बेंच खरीदे, कक्षा-कक्षों की रंगाई-पुताई कराई और वातावरण को बच्चों के लिए दोस्ताना बनाया।

डेस्क-बेंच: बच्चों के लिए बड़ा बदलाव

जहां अधिकतर ग्रामीण सरकारी स्कूलों में आज भी बच्चे फर्श पर बैठकर पढ़ते हैं, वहीं कचबैड़ी स्कूल के बच्चों को अब डेस्क-बेंच पर पढ़ने की सुविधा मिली है।
बच्चों के बैठने के तरीके में आया यह बदलाव न केवल उनके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, बल्कि पढ़ाई में मन लगाने, लिखने में आसानी, और आत्मविश्वास बढ़ाने में भी सहायक है।
छात्रा प्रियंका कहती है, “अब हम भी निजी स्कूलों के बच्चों की तरह डेस्क पर बैठकर पढ़ते हैं। टीचर का पढ़ाना और भी अच्छा लगता है।”

शिक्षकों की व्यक्तिगत पहल

स्कूल के शिक्षकों ने अपने वेतन से, और स्थानीय दानदाताओं की मदद से, बुनियादी ढांचा मजबूत किया।
शिक्षक रवि शर्मा बताते हैं कि स्कूल में जितने भी बदलाव हुए, वे प्रशासन की बजट प्रक्रिया का इंतजार किए बिना, व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों से संभव हुए हैं।
कक्षा-कक्षों में शैक्षिक चार्ट, पुस्तकालय, विज्ञान प्रयोग किट, गणित मॉडल, रंगीन दीवार चित्र आदि के लिए भी शिक्षकों ने आर्थिक सहयोग किया।

बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी

शिक्षकों के प्रयासों और सकारात्मक माहौल के कारण पिछले 2 वर्षों में स्कूल में नामांकित बच्चों की संख्या दोगुनी हो गई।
जहां पहले स्कूल में सिर्फ 45 बच्चे थे, अब 100 से अधिक विद्यार्थी नियमित स्कूल आते हैं।
अभिभावक अब अपने बच्चों को निजी स्कूल से निकालकर कचबैड़ी के सरकारी स्कूल में भेजने लगे हैं।

नवाचार और शैक्षिक गुणवत्ता

यह स्कूल सिर्फ भौतिक संसाधनों तक सीमित नहीं है।
शिक्षकों ने पढ़ाई को रोचक बनाने के लिए—

  • खेल आधारित शिक्षण

  • कहानी सुनाना

  • समूह गतिविधियां

  • प्रोजेक्ट वर्क

  • स्मार्ट टीचिंग (डिजिटल साधनों से पढ़ाई)
    जैसी विधियां अपनाईं।
    बच्चे विज्ञान, गणित, हिंदी, पर्यावरण आदि विषयों में सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं।

छात्र-छात्राओं की उपलब्धियां

स्कूल के बच्चों ने जिला स्तरीय विज्ञान मॉडल प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता, सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी में पुरस्कार जीते हैं।
हाल ही में आयोजित हिंदी दिवस पर कविता पाठ में कक्षा 4 के छात्र राहुल यादव ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।
विद्यालय में वार्षिक खेल महोत्सव, निबंध लेखन, पोस्टर प्रतियोगिता आदि भी नियमित कराए जाते हैं।

अभिभावकों का नजरिया बदला

अभिभावक अब स्कूल प्रबंधन समिति (एसएमसी) की बैठकों में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।
माता-पिता अभिषेक वर्मा कहते हैं, “पहले हमें सरकारी स्कूलों पर भरोसा नहीं था, लेकिन अब बच्चों का स्तर देखकर बहुत संतुष्ट हैं।”
ग्रामीण समाज में सरकारी स्कूलों के प्रति नजरिया सकारात्मक हुआ है।

शिक्षक-छात्र संबंध: प्रेरणा का स्रोत

कचबैड़ी स्कूल में शिक्षकों का छात्रों के साथ मित्रवत रिश्ता है।
छात्रा साक्षी कहती है, “हमारे टीचर हमेशा हमें प्रोत्साहित करते हैं, कभी डांटते नहीं, बल्कि समझाते हैं।”
इससे बच्चे निडर होकर अपनी समस्याएं, सवाल और विचार खुलकर साझा करते हैं।

सामुदायिक सहभागिता और संसाधन

स्कूल में पानी, शौचालय, खेल मैदान, पौधरोपण, स्वच्छता अभियान, पुस्तकालय, स्वास्थ्य जांच आदि के लिए ग्राम पंचायत, एनजीओ और समाजसेवियों का सहयोग लिया गया।
गांव के पूर्व सरपंच रमेश पटेल ने स्कूल में फर्नीचर दान किया।
पुस्तकें, स्टेशनरी, पौधे, खेलकूद सामग्री के लिए समाज के सभी वर्ग सक्रिय हुए।

सरकारी योजनाओं का लाभ

मध्यप्रदेश शासन की 'स्कूल चले हम', 'मिड डे मील', 'फ्री यूनिफॉर्म', 'बालिका सशक्तिकरण', 'डिजिटल एजुकेशन', 'सामुदायिक शौचालय' जैसी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन किया जा रहा है।
हर बच्चे को समय पर पोषाहार, यूनिफॉर्म, किताबें उपलब्ध कराई जाती हैं।

लड़कियों की शिक्षा पर जोर

विद्यालय में लड़कियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
प्रधान पाठक राजेंद्र दीक्षित के अनुसार, “लड़कियों को पढ़ाने के लिए अभिभावकों को बार-बार समझाया गया, उनके लिए अलग टॉयलेट, स्वच्छता, सुरक्षा, विशेष कक्षाएं, वर्कशॉप्स कराई गईं।”
आज स्कूल की 40% से ज्यादा छात्राएं हैं।

स्वच्छता और पर्यावरण शिक्षा

स्कूल में प्रतिदिन प्रार्थना सभा के बाद स्वच्छता अभियान, पौधरोपण, जल संरक्षण, प्लास्टिक मुक्त परिसर, पर्यावरण शपथ जैसी गतिविधियां कराई जाती हैं।
इससे बच्चों में सफाई, हरियाली, जल बचाओ, प्लास्टिक ना प्रयोग करें जैसी आदतें विकसित हो रही हैं।

शिक्षकों का सम्मान और प्रेरणा

ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, जनपद पंचायत, जिला प्रशासन ने भी कचबैड़ी स्कूल के शिक्षकों के प्रयासों की सराहना की।
पिछले वर्ष शिक्षक दिवस पर प्रधान पाठक और दो अन्य शिक्षकों को सम्मानित किया गया।
यह खबर सोशल मीडिया और स्थानीय समाचार पत्रों में भी छपी।

समाज के लिए प्रेरणा

कचबैड़ी स्कूल की सफलता की कहानी पूरे जिले के अन्य स्कूलों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है।
अब अन्य सरकारी स्कूलों के शिक्षक भी इसी मॉडल को अपनाकर बच्चों के लिए डेस्क-बेंच, डिजिटल कक्षाएं, खेल सामग्री, पुस्तकालय, सांस्कृतिक गतिविधियां शुरू कर रहे हैं।

बच्चों के अनुभव

छात्र गौरव कहता है, “स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ खेल, चित्रकारी, कहानी सुनना, सब बहुत अच्छा लगता है।”
छात्रा अनीता बोलती है, “अब हमें स्कूल में हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता है, टीचर हमें हर बार प्रोत्साहित करते हैं।”

भविष्य की योजना

स्कूल प्रबंधन और शिक्षक अब अगले सत्र से स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर शिक्षा, अंग्रेजी स्पोकन क्लास, विज्ञान प्रयोगशाला, योग कक्षा जैसी सुविधाएं शुरू करने का लक्ष्य बना रहे हैं।
इसके लिए समाज और प्रशासन से सहयोग मांगा जा रहा है।

निष्कर्ष

हरदा जिले के कचबैड़ी स्कूल की यह सफलता केवल एक स्कूल या गांव की नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की मिसाल है।
जब शिक्षक, समाज, अभिभावक और छात्र मिलकर बदलाव की जिम्मेदारी लें, तो सरकारी स्कूलों की छवि और गुणवत्ता दोनों में क्रांतिकारी बदलाव संभव है।

कचबैड़ी स्कूल की कहानी उन सभी सरकारी स्कूलों के लिए संदेश है—
"संसाधन सीमित हों, पर जुनून और सहयोग असीमित हो तो बदलाव जरूर आता है।"