"गोस्वामी जी न होते तो आज घर-घर राम की शायद चर्चा न होती" — लोककवि लोकेश जी का भावपूर्ण संबोधन
स्थान: प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश ब्यूरो रिपोर्ट: BNT

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश:
सर्वोदय सद्भावना संस्थान के तत्वावधान में रामानुज आश्रम, प्रतापगढ़ में एक भव्य एवं दिव्य आयोजन के माध्यम से परम वैष्णव संत गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई गई। यह आयोजन डॉ. श्याम शंकर शुक्ल “श्याम” की अध्यक्षता तथा डॉ. संगम लाल त्रिपाठी भंवर के संरक्षण में संपन्न हुआ।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध कवि एवं सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (भारत सरकार) के अंतर्गत आकाशवाणी और दूरदर्शन के पूर्व निदेशक श्री लोकेश जी ने गरिमामयी उपस्थिति दर्ज की। उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास जी के चित्रपट एवं श्रीरामचरितमानस का पूजन कर अपनी श्रद्धा अर्पित की और तत्पश्चात समारोह को संबोधित किया।
🌸 तुलसीदास: समर्पण और सनातन धर्म की आत्मा
अपने भाषण में लोकेश जी ने कहा:
“यदि गोस्वामी तुलसीदास न होते, तो आज घर-घर राम नाम की चर्चा न होती। उन्होंने हमें न केवल श्रीराम के जीवन को गाया, बल्कि उस संस्कृति को बचाया जो आज हमारी आत्मा है।”
उन्होंने यह भी कहा कि गोस्वामी जी स्वयं को स्वामी नहीं बल्कि राम का ‘दास’ मानते थे। उन्होंने अवधी भाषा में "श्रीरामचरितमानस" जैसे अनुपम महाकाव्य की रचना कर लोकभाषा को धर्म की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। तुलसीदास जी की लेखनी ने श्रीराम को हर घर तक पहुँचाया।
उनकी तुलना में उन्होंने केवल दो महाकाव्य गिनाए —
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"श्रीरामचरितमानस" (गोस्वामी तुलसीदास द्वारा)
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"पद्मावत" (मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा)
इसके अतिरिक्त उन्होंने अपना स्वरचित भजन “ऐसे को उदार जग माहीं…” गाकर लोगों को भावविभोर कर दिया।
🔱 गोस्वामी जी का जीवनकाल और ऐतिहासिक यात्रा
आयोजक धर्माचार्य ओमप्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुजदास ने अपने वक्तव्य में तुलसीदास जी के जीवन की अनेक ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश डाला:
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जन्म को लेकर मतभेद — कुछ लोग चित्रकूट, कुछ गोंडा, तो कुछ प्रतापगढ़ के राजपुर ग्राम को मानते हैं।
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संवत 1607 में मौनी अमावस्या के दिन चित्रकूट में प्रभु श्रीराम के दर्शन का वर्णन।
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श्री हनुमान जी ने तोते का रूप धारण कर उन्हें राम के दर्शन की सूचना दी —
“चित्रकूट के घाट पर, भाई संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुवीर।” -
उन्होंने काशी, अयोध्या, प्रयाग और अन्य तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए संवत 1631 में रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की, जो 2 वर्ष 7 माह 26 दिन में पूर्ण हुई।
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संवत 1680, श्रावण कृष्ण तृतीया, शनिवार को अस्सी घाट (काशी) पर श्रीराम नाम का जाप करते हुए उन्होंने देह त्याग किया।
📚 उनकी रचनाएँ: साहित्य और साधना का संगम
गोस्वामी जी की प्रमुख रचनाएं हैं:
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श्रीरामचरितमानस
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हनुमान चालीसा
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विनय पत्रिका
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कवितावली
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दोहावली
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वरवै रामायण
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रामलला नहछू
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पार्वती मंगल
धर्माचार्य ने कहा,
“यदि गोस्वामी जी ने हनुमान चालीसा न लिखी होती, तो शायद आज घर-घर प्रेत-बाधा और भय का वातावरण होता।”
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि गोस्वामी जी ने स्वयं स्पष्ट किया कि:
“मैं यह ‘स्वान्तः सुखाय’ लिख रहा हूँ, किसी पर थोपने का इरादा नहीं है।”
आज विश्व भर में श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों पर शोध हो रहा है — यह उनकी रचनाओं की सार्वकालिक प्रासंगिकता का प्रमाण है।
🕊️ श्रद्धा सुमन और काव्यांजलि से सजी संध्या
कार्यक्रम के दौरान उपस्थित विद्वानों, कवियों और समाजसेवियों ने भी तुलसीदास जी के योगदान पर प्रकाश डाला और उन्हें महामानव, त्यागी और लोभ से रहित संत बताया।
मुख्य उपस्थितजनों में रहे:
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सुरेश पांडे संभव, कविवर सुनील प्रभाकर, उदय राज मिश्रा उजड्ड, गंगा पांडे भावुक, प्रेम कुमार त्रिपाठी एडवोकेट, प्रेम शेषनारायण राही, कल्पना तिवारी, कनक तिवारी,
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अशोक राय, रामचंद्र मिश्रा, देवेंद्र प्रकाश ओझा एडवोकेट, राम शिरोमणि ओझा, बी.पी. मिश्रा, गिरीशचंद्र मिश्रा, त्रिलोकनाथ शर्मा, सुनील शर्मा (सूबेदार मेजर),
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डॉ. अवंतिका, आरविका पांडे, डॉ. अंकिता पांडे, पूजा पांडे, राकेश सिंह, नारायणी रामानुजदासी, छोटेलाल आदि।
इन सभी ने कविता पाठ, भजन, और वक्तव्यों के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की।
🎁 सम्मान व समापन
अंत में धर्माचार्य ओमप्रकाश पांडे ने लोकेश जी, डॉ. श्याम शंकर शुक्ल “श्याम”, अर्पित शुक्ला, और कनक तिवारी को अंगवस्त्र व माल्यार्पणकर सम्मानित किया। सभी को भगवान श्रीजगन्नाथ जी का महाप्रसाद भी वितरित किया गया।
कार्यक्रम का संचालन सुप्रसिद्ध अधिवक्ता सुरेश नारायण “व्योम” ने किया।
संस्थान के सचिव श्री विश्वम प्रकाश पांडे ने उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों के प्रति आभार जताया।